सरकारी दफ्तरों में फिसड्डी साबित हो रहा है राईट टू सर्विस एक्ट ?

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सरकारी दफ्तरों में फिसड्डी साबित हो रहा है राईट टू सर्विस एक्ट ?

Report : Ezaz Ahmad

झारखंड में राईट टू सर्विस एक्ट वर्ष 2011 में लागू हुआ है. राईट टू सर्विस एक्ट यानी सेवा का अधिकार कानून.  इस अधिनियम का तात्पर्य है, ऐसा कानून जो नागरिकों को एक निर्धारित अवधि के अंदर लोक सेवाएं देने की गारंटी देता हो.

भारत में लोक सेवा अधिकार कानून का बनाया जाना इसीलिए जरूरी समझा गया. ताकि लोगों को सरकारी कार्यालयों का चक्कर बार-बार लगाना न पड़ेे. एक निश्चित अविध के अंदर उनका कार्य पूरा हो सके. इन कानूनों में यह प्रावधान है, जो लोकसेवक यानी सरकारी मुलाजिम समय पर अगर आपका कार्य पूर्ण न करें तो उन्हें दोषी मानते हुए दंडित किया जा सके.

विभाग के पदाधिकारी, कर्मचारी पर गिर सकती है गाज !

आप आम बोलचाल के भाषा में ऐसे समझिये… मानलीजिये आपने प्रखंड या अंचल कार्यालय में किसी प्रमाण पत्र हेतु आवेदन किया है. आवेदन करने की तिथि से 15 या फिर 30 दिन  ( कार्य पूर्ण होने की निर्धारित अवधि ) से अधिक समय बीत गया और आपको प्रमाण पत्र नहीं मिले. जबकि प्रमाण पत्रों के लिए 15 से 30 दिन की समयावधि निर्धारित की गई हो..ऐसे में राईट टू सर्विस एक्ट कानून के तहत संबंधित विभाग के पदाधिकारी, कर्मचारी पर गाज गिर सकती है. सरकारी दफ्तरों में नागरिकों के अलग-अलग कार्यों को लेकर निर्धारित समय अवधि तय की गई है. तय समय पर अगर आपका कार्य पूरा न हो तो लोकसेवक पर कार्रवाई के लिए आगे बढ़ा जा सकता है.

अधिकत्तर अधिकारियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगते देखा गया !

प्रखंड कार्यालय, थाना, अस्पताल, अंचल कार्यालय, नगर पर्षद, नगर निगम, वन विभाग, निबंधन विभाग जैसे विभागों में अगर आपके कार्य समय अविध पर नहीं होती है तो आप राईट टू सर्विस एक्ट के तहत कानून.. कार्रवाई के लिए आगे बढ़ सकते हैं. प्रमाण पत्रों के लिए 15 से 30 दिन, पासपोर्ट, चरित्र प्रमाण पत्र सत्यापन के लिए 7 दिन समेत अन्य कार्यो के लिए ( कार्य पूर्ण होने की निर्धारित अवधि )  दिन की अविध तय की गई है. लेकिन प्रायः कुछ सरकारी दफ्तरों को छोड़ देें तो करीब-करीब सभी में उक्त अधिनियम का पालन सरकारी मुलाजिम नहीं करते है. जिसका खामियजा लोगों को भुगतना पड़ता है. अगर पब्लिक अपने अधिकार का प्रयोग करे तो सरकारी नौकरों की कुर्सी भी खतरे में पड़ सकती है. ऐसे कानून का पालन नहीं करने वाले अधिकत्तर अधिकारियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगते देखा गया है.

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