वक्त के साथ साईबर अपराधियों ने भी बढ़ाया अपनी तकनीक ?

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वक्त के साथ साईबर अपराधियों ने भी बढ़ाया अपनी तकनीक ?

भारत देश के करीब-करीब सभी राज्यों के लोग साईबर ठगी का शिकार हो रहें है या फिर कहिये होते आये हैं. जितनी तेजी से साईबर अपराध का ग्राफ बढ़ा है. उतनी ही तेजी से पैसे की लेन-देन की तकनीक भी बढ़ती गई है. करीब सात से आठ साल बीते वर्षों पर गौर करें तो पैसे ठगने का हथकंडा उस समय बैंकों से फर्जी हस्ताक्षर कर दूसरे के खाते से पैसे निकाल लिये जाते थे या फिर चेक में हेरफेर कर रकम को बढ़ाकर पैसे निकालने का मामला सुनने को मिला करता था. वक्त बदलता गया बैंकों में एटीएम का प्रचलन शुरू हुई और फिर साईबर अपराध का नया हथकंडा भी शुरू हो गया.

The Wajood@Desk

एटीएम कार्ड का फेरबदल कर पैसे की निकासी

एटीएम केंद्रों में घात लगाये उच्चकों द्वारा बैंक ग्राहकों को विश्वास में लेकर एटीएम कार्ड का फेरबदल कर पैसे की निकासी कर लिये जाने का मामला तेजी से आने लगा. इस तरह की धोखाधड़ी भी लोगों के बीच कई सालों तक चर्चा का विषय बनाता रहा. कई लोग तो बैंकों के एटीएम लेने से कतराने भी लगे थे. धीरे-धीरे साईबर अपराधियों ने एटीएम का क्लोन भी बनाना प्रारंभ कर दिया. देखते ही देखते साईबर क्राईम का दायरा बढ़ता चला गया.

फर्जी मोबाइल सीम बना साईबर अपराधियों का अचूक हथियार

साईबर क्राईम का हाईटेक दौर हालिया वर्षों में काफी तेजी से बढ़ी है. साईबर अपराधियों ने फर्जी मोबाइल सीम का प्रयोग धड़ल्ले से करने लगा.अधिकत्तर मामले फर्जी बैंक अधिकारी बनकर एटीएम चेंज करने, बैंक खाता का केवाईसी की बात कहकर बैंक ग्राहकों को फोन किया जाने लगा. बैंक खाताधारकों को फोन से बात कर झांसा में लेते हुए ओटीपी की मांग की जाने लगी. ओटीपी देते ही पैसों की ठगी का मामला सामने आया. फर्जी मोबाइल सीम का व्यवहार कर साईबर अपराधी लाखों-करोड़ों रूपये की ठगी को अंजाम देने का काम करने लगा. इन अपराधियों के लिए आज भी फर्जी मोबाइल सीम अचूक हथियार साबित हो रहा है. हालांकि कुछ वर्षों से मोबाइल सीम की खरीदारी की प्रक्रिया जटिल हुई है. जिससे अपराध में भी कमी देखने को मिली.

ई-वाॅलेट अकाउंट को भी साइबर डकैतों ने बनाया निशाना

जैसे-जैसे पैसे की लेन-देन की प्रक्रिया में बदलाव आने लगा. वैसे-वैसे अपराधियों ने अपने तकनीक को भी अपग्रेड कर लिया. गूगल पे, पेटीएम, मोबिकविक, फ्रीचार्ज, एलाइड सहित अन्य ई वाॅलेट अकाउंट से पैसे की फर्जी निकासी करने का रास्ता भी साईबर डकैतों द्वारा ढुंढ लिया गया. इसके जरिये हो रहे ठगी के मामले आज के दौर में देखा जा रहा है. इंटरनेट फर्जी काॅल के आधार पर भी ठगी की घटना घटित हो रही है.

लोकेशन चेंज कर साईबर अपराधी करता है ठगी

साईबर हाईटेक डकैतों का कार्यक्षेत्र हमेशा से ही सुनसान लोकेशन रहा है. आबादी से दूर जंगलो, पहाड़ों, मैदानों, खंडहरो जैसे इलाके रहें हैं. जहां लोगों का आना-जाना कम हो या फिर पुलिस पकड़ से दूर रहा जा सके. इन इलाकों से साईबर अपराधियों का गिरोह लोगों को फोन कर अपने जाल में फंसाने का काम करते आया है. काम होने के बाद लोकेशन के साथ-साथ मोबाइल या मोबाइल सीम या फिर दोनों को बदल दिया जाता है.

साईबर अपराधियों  पर  पुलिस ने कसा है शिकंजा

साईबर अपराधियों का हब जामताड़ा जिला को माना जाता है. इसको लेकर फिल्में भी बनाई गई है. इस जिले से सटे देवघर, गिरिडीह एवं पास के दुमका समेत अन्य जिले में भी साइबर क्राईम का मामला देखने को मिल रहा है. वहीं इसके लिए विभिन्न जिलों में बनाये साईबर थाना भी अपनी सक्रियता निभा रही है. अपराध में लिप्त ऐसे अपराधियों को पुलिस द्वारा लगातार पकड़कर जेल भेजने का काम किया जा रहा है. कई अपराधियों की संपत्ति भी जब्त की गई है. साईबर पुलिस की टेक्निकल टीम अपराधियों को पकड़े जाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है.

थोड़ी सी चूक होने पर लोग हो जाते हैं कंगाल

साईबर अपराधियों की जड़े तब तक कायम है, जब तक लोगों में जागकरूता और सतर्कता का अभाव है. बैंक और पुलिस प्रशासन की ओर से हमेशा लोगों को इस तरह के फर्जी काॅलरों के झांसे में न आने की सलाह प्रचार-प्रसार के माध्यम से दी जाती रही है. बावजूद लोग अपना पर्सनल डिटेल्स, गोपनीय पीन, ओटीपी, डेटाबेस आदि झांसे में आकर शेयर कर देते हैं और इसका फायदा ऐसे अपराधी उठा लिया करता है. जरूरत है लोगों को ऐसे फर्जी काॅल एवं सोशल मीडिया फिशरों से बचने की. एक बात कान खोलकर हमें जान लेनी चाहिए कि बैंक हमारी पर्सनल आइडेंटिफिकेशन से जुड़ी किसी तरह की जानकारी फोन के जरिये नहीं मांगती है. इसका पालन हमें करने की जरूरत है.

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