मधुपुर का धरोहर है, डालमियां कूप का मजदूर चौक !
मधुपुर का धरोहर है, डालमियां कूप का मजदूर चौक !
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मधुपुर का एक ऐसा कुआं जो लोगों की प्यास बुझाने के साथ-साथ दिहाड़ी मजदूरों का एक्जेट एड्रेस भी कहलाता है. जी हां डालमिया कूप, इसे आप डालमियां कूप का मजदूर चौक भी कह सकते हैं. सन् 1951 में सीताराम डालमियां के अथक प्रयास से इस कूप का निर्माण राहगिरों, मजदूरों और स्थानीय लोगों की प्यास बुझाने के लिए बनवाया गया था. इसीलिए इस कुंऐं का नाम भी सीताराम डालमियां के सरनेम पर रखा गया.
सैकड़ों दिहाड़ी मजदूरों के लिए यह कूप मजदूर चौक के रूप में वर्षों से देखा जा रहा है। क्षेत्र के भेड़वा, लखना, पसिया, लालगढ़, बड़बाद, पटवाबाद, चांदमारी, छोटा शेखपुरा, बहादुरपुर, पाथरोल, पथलचपटी, खलासी मुहल्ला, नावाडीह भेड़वा, महुआडाबर, कुम्हाटोली जैसे इलाकों के मजूदरों का जत्था डालमियां कूप के चबतूरे और ईद-गिर्द सुबह के सात बजते ही दिखने लगते है. खासकर राजमिस्त्री और लेबर आपको आसानी से यहां मिल जाते हैं. सीता राम डालमियां के परपौत्र रंजीत डालमियां बताते हैं कि सन् 1947 में ही डालमियां कूप का खुदाई प्रारंभ किया गया था. अंग्रेजों के न चाहते हुए भी रात के अंधेरे में कुआं खुदाई का काम मजदूरों की मदद से उनके परदादा सीताराम डालमियां द्वारा करवाया गया था. उस समय अंग्रेजी हुक्मरानों से छुप-छिपाकर कुऐं का खुदाई की जाती थी. आज यह कूप लोगों की प्यास बुझाने के साथ-साथ मजूदरों की पहचान बन गई है. पीढ़ी दर पीढ़ी डालमियां कूप मजदूरों का स्थायी पता होते रहा है. बेशक डालमियां कूप का मजदूर चौक मधुपुर शहर के लिए किसी धरोहर से कम नहीं है.