एक हजार बीड़ी और 80 रूपया मजदूरी, बेहाल हुआ बीड़ी मजदूर!

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desk@thewajood

झारखंड के मधुपुर में पिछले कई दषकों से एक तबका बीड़ी बनाने का पुष्तैनी धंधा आज भी अपनाये हुए.
देवघर जिला के मधुपुर प्रखंड अंतर्गत पसिया पंचायत के केसगढ़ा गांव में अधिकत्तर ग्रामीणों का पेषा बीड़ी बनाना रहा है. पीढ़ी दर पीढ़ी, बीड़ी बनाने का सिससिला आज भी बदस्तूर जारी है. खासकर महिलाऐं घर के कामकाज के साथ-साथ बीड़ी बनाने का काम करतीं हैं. मुक्कमल रोजगार न होने की वजह से मजबूरी में बीड़ी बनाने का काम आज भी महिलायें कर रहीं हैं.

दिनभर की मेहनत और 60 से 70 रूपये  कमाई
बीड़ी बनाने का कारोबार इनका खुद का नहीं है. बल्कि कंपनी के ठेकेदारों के अधीन ये महिलायें काम करती है. दिनभर में जितना बीड़ी बनाया जाता है उतने का पैसे मिलता है. इन मजदूरों का कहना है कंपनी द्वारा प्रति 1000 बीड़ी बनाने के एवज में मात्र 80 रूपये ही मिलते है. वो भी दिनभर मेहनत करने पर एक महिला मजदूर 600 से 700 बीड़ी तक ही बना पातीं है. इतने कम पैसे में परिवार का भरण-पोषण करना इनके लिए काफी कठिन हो जाता है.

सरकारी योजनाओं से भी वंचित है यहां के ग्रामीण
एक ओर जहां इन बीड़ी मजदूरों को कंपनी के ठेकेदार कम मजदूरी दे रही है. वहीं सरकारी योजनाओं से भी यहां के ग्रामीण वंचित है. पीएम आवास, शौचालय, पेयजलापूर्ति जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव इस गांव में है. कई ऐसे ग्रामीण है, जिन्हें राषन कार्ड, शौचालय, पीएम आवास अब तक नहीं मिल पाया है. इन मजदूरों के व्यस्क बच्चे काम की तलाश में रहते हैं . किसी दिन काम नहीं मिलने पर महिलाओं के साथ बीड़ी बनाने में जुट जातें है. रोजगार के अलावा इस गांव में कई ऐसी समस्याऐं पांव पसारे हुए है. जिनसे सरकारी योजनाओं के धरातल पर होने का दावा खोखला साबित होता है.

पीएम आवास नहीं मिलने पर बकरी शेड में रहते है ग्रामीण
गांव में कई ऐसे लोग है, जिन्हें पीएम आवास नहीं मिला या फिर यूं कहें कि पीएम आवास में घूस की रकम ज्यादा होने के कारण बकरी शेड के लिए मिले राशि से घर बनाकर रहने को मजबूर है. इस गांव में कईयों को शौचलाय भी नहीं मिला है. जबकि झारखंड राज्य पूरी तरह ओडीएफ घोषित हो चुका है.

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